बुधवार, 24 अगस्त 2011

जटामांसी :सिर की ज्यादातर बीमारियों के लिए

  • मैं बहुत दिनों से जटामांसी के बारे में लिखना चाह रही थी लेकिन कुछ तो संयोग नहीं बन पा रहा था और कुछ मेरी जानकारियों से मैं खुद संतुष्ट  नहीं थी, जबकि ये अकेली जड़ी है जिसका मैंने ७५%मरीजों पर सफलतापूर्वक प्रयोग किया है. फिर मरीजों की क्या बात करूँ ,मैं जो  आज आपके सामने सही-सलामत मौजूद हूँ वह इसी जटामांसी का कमाल है. इसलिए आज इस जड़ी का आभार व्यक्त करते हुए आपको इससे परिचित कराती हूँ.

  • आइये  पहले इसके नामो के बारे में जानते हैं-
  • हिंदी- जटामांसी, बालछड , गुजराती में भी ये ही दोनों नाम,तेल्गू में जटामांही ,पहाडी लोग भूतकेश कहते हैं और संस्कृत में तो कई सारे नाम मिलते हैं- जठी, पेशी, लोमशा, जातीला, मांसी, तपस्विनी, मिसी, मृगभक्षा, मिसिका, चक्रवर्तिनी, भूतजटा.यूनानी में इसे सुबुल हिन्दी कहते हैं.
  • ये पहाड़ों पर ही बर्फ में पैदा होती है. इसके रोयेंदार तने तथा जड़ ही दवा के रूप में उपयोग में आती है. जड़ों में बड़ी तीखी तेज महक होती है.ये दिखने में काले रंग की किसी साधू की जटाओं की तरह होती है. 
  • इसमें पाए जाने वाले रासायनिक तत्वों के बारे में भी जान लेना ज्यादा अच्छा रहेगा---- इसके जड़ और भौमिक काण्ड में जटामेंसान , जटामासिक एसिड ,एक्टीनीदीन, टरपेन, एल्कोहाल , ल्यूपियाल, जटामेनसोंन और कुछ उत्पत्त तेल पाए जाते हैं.
  • अब इस के उपयोग के बारे में जानते हैं :-
  • मस्तिष्क और नाड़ियों के रोगों के लिए ये राम बाण औषधि है, ये धीमे लेकिन प्रभावशाली ढंग से काम करती है.
  • पागलपन , हिस्टीरिया, मिर्गी, नाडी का धीमी गति से चलना,,मन बेचैन होना, याददाश्त कम होना.,इन सारे रोगों की यही अचूक दवा है.
  • ये त्रिदोष को भी शांत करती है और सन्निपात के लक्षण ख़त्म करती है.
  • इसके सेवन से बाल काले और लम्बे होते हैं.
  • इसके काढ़े को रोजाना पीने से आँखों की रोशनी बढ़ती है.
  • चर्म रोग , सोरायसिस में भी इसका लेप फायदा पहुंचाता है.
  • दांतों में दर्द हो तो जटामांसी के महीन पावडर से मंजन कीजिए.
  • नारियों के मोनोपाज के समय तो ये सच्ची साथी की तरह काम करती है.
  • इसका शरबत दिल को मजबूत बनाता है, और शरीर में कहीं भी जमे हुए कफ  को बाहर निकालता है.
  • मासिक धर्म के समय होने वाले कष्ट को जटामांसी का काढा ख़त्म करता है.
  • इसे पानी में पीस कर जहां लेप कर देंगे  वहाँ का दर्द ख़त्म हो जाएगा ,विशेषतः सर का और हृदय का.
  • इसको खाने या पीने से मूत्रनली के रोग, पाचननली के रोग, श्वासनली के रोग, गले के रोग, आँख के रोग,दिमाग के रोग, हैजा, शरीर में मौजूद विष नष्ट होते हैं.
  • अगर पेट फूला हो तो जटामांसी को सिरके में पीस कर नमक मिलाकर लेप करो तो पेट की सूजन कम होकर पेट सपाट हो जाता है.

शनिवार, 26 मार्च 2011

आंवला अमर फल


काले तिल की पोस्ट में एक आदरणीय पाठक महोदय ने आंवला के बारे में जानना चाहा था ,इसलिए ये लेख मैं आपके सम्मुख रख रही हूँ .यह लेख  प्रतिष्ठित पत्रिका कादम्बिनी में दिसंबर २०१० के अंक में प्रकाशित हो चुका है 

आंवला हमारी नस नस में  समाया हुआ फल है. हर खासो-आम  इसका मुरीद है, लड़कियों के बाल धुलने से लेकर दादी नानी के चटपटे हाज़मा चूर्ण तक में इसकी गहरी पैठ है. बुजुर्ग लोग आज भी कार्तिक का महीना आते ही आंवले का पेड़ खोजने लगते हैं ताकि दिन भर उसी के नीचे बैठकी जमे. बहुत शुभ और गुणकारी माना जाता है कार्तिक के महीने में आंवले का सेवन. इसके पेड़ की छाया तक में एंटीवायरस गुण हैं और गज़ब की जीवनी शक्ति है. कार्तिक के महीने में इस पेड़ के ये दोनों गुण चरम पर होते हैं, अगर आप श्वास की किसी भी बीमारी से परेशान है तो सिर्फ इसके पेड़ के नीचे खड़े होकर ५ मिनट गहरी गहरी श्वासें लीजिये,१०-१५ दिन में ही बीमारी आपका पीछा छोड़ देगी.

इसे अमर फल भी कहते हैं.कहीं कहीं धात्रीफल और आदिफल के नाम से भी जानते हैं . इसका वैज्ञानिक नाम है-एम्ब्लिका आफीसिनेलिस.  इस आमले/आंवले के फल और बीज दोनों ही उपयोगी हैं. इसके फल में प्रोटीन,कर्बोहाईड्रेट , रेशा, वसा,विटामिन-सी,विटामिन बी-१,एस्कार्बिक एसिड , निकोटेनिक एसिड, टैनिन्स, ग्लूकोज, फ्लेविन, गेलिक एसिड और इलैजिक एसिड पाए जाते हैं.इसके बीजों में आलिक एसिड लिनोलिक एसिड और लिनोलेनिक एसिड पाए जाते हैं.
ये एक आंवला हजार बीमारियों को भगाता है, लेकिन वहीँ आंवले का मुरब्बा अगर चूने के पानी में उबाल कर बनाया गया है तो सिर्फ सुस्वादु ही हो सकता है, गुणकारी नहीं . इसलिए कोशिश करनी चाहिए कि हरा आंवला ही ज्यादा प्रयोग किया जाए. ये चार महीने बाजार में उपलब्ध रहता है. अगर हम चार महीने इसका सेवन कर लें तो शेष आठ महीने तक तो रोग रहित होकर जीवनयापन कर ही सकते हैं.
इसके सेवन का बिलकुल सामान्य और आयुर्वेदिक तरीका कुछ यूं है--

--- आप १ किलोग्राम हरा आंवला लीजिये साथ ही २०० ग्राम हरी मिर्च. दोनों को धो लीजिये .आंवले को काट कर गुठलियाँ   बाहर निकाल दीजिये, अब दोनों को ग्राईडर में  दरदरा पीस लीजिये (बिना पानी डाले).अब इसमें १०० ग्राम सेंधा नमक मिला दीजिये . इसे परिवार का प्रत्येक सदस्य चटपटी चटनी की तरह मजे से खायेगा .इसी को आप धूप में सुखा कर पूरे वर्ष के लिए सुरक्षित भी रख सकते हैं.जब इच्छा हो दाल या सब्जी में ऊपर से डाल कर खा सकते हैं. हरी मिर्च  (कच्ची) हीमोग्लोविन बढाती है और आंवले के साथ उसका मिश्रण सोने में सुहागा हो जाता है. इसका प्रयोग शरीर में एक्टिवनेस  को तो २४ घंटे में ही बढ़ा देता है अनगिनत लाभ हैं इससे .लीवर मजबूत  हो  जाता  है.  

ल्यूकोरिया के लिए 
आंवले के बीजों का पावडर बना लीजिये. एक चम्मच पावडर में आधा चम्मच शहद और थोड़ी सी मिश्री मिला कर सवेरे खाली पेट खाएं. १५ दिनों तक

बुढापा दूर करने के लिए
१०० ग्राम आंवले का पावडर और १०० ग्राम काले तिल का पावडर मिलाये. अब इसमें ५० ग्राम शहद और १०० ग्राम देसी घी मिलाएं . एक चम्मच प्रतिदिन सुबह सिर्फ एक महीने तक खाना है 

ज्वर दूर करने के लि
दो चम्मच हरे आंवले का रस और दो ही चम्मच अदरक का रस मिश्री मिलाकर दिन में दो बार . बस 

मूत्र त्याग में दर्द के लिए 
१५० ग्राम आंवले का रस लीजिये ,बिना कुछ मिलाये पी जाएं , बस दो दिनों तक

खांसी में
सूखे आंवले के एक चम्मच पावडर में थोड़ा घी मिला कर पेस्ट बना लीजिये, दिन में दो बार चाटिये 

सुगर के मरीजों के लिए
आंवला और हल्दी का पावडर बराबर मात्रा में लीजिये ,अच्छी तरह मिक्स कीजिए.जितनी बार भी भोजन करें उसके बाद एक चम्मच पावडर पानी से निगल लीजिये.सुगर कभी परेशान नहीं करेगी

हकलाहट हो तो
१०० ग्राम गाय के दूध में एक चम्मच सूखे आंवले का पावडर मिला कर लगातार १५ दिन पीयें, आवाज बराबर से निकलेगी और कंठ सुरीला भी होगा 

छाती(सीने) में जलन के लि
सूखे आंवले का एक चम्मच पावडर शहद मिला कर सुबह चाटिये 
या
एक चम्मच पावडर में दो चम्मच चीनी और दो ही चम्मच घी मिलाकर चाटिये.

पीलिया(जांडिस) में
एक गिलास गन्ने के रस में तीन बड़े चम्मच हरे आंवले का रस और तीन ही चम्मच शहद मिला कर दिन में दो बार पिलाए. १० दिन तक पिलाना बेहतर रहेगा जबकि रोग तो तीन दिन में ही ख़त्म हो जाएगा
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